मिलने को तो ज़िंदगी मेंमिलने को तो ज़िंदगी में..मिलने को तो ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिलेपर उनकी तबियत से अपनी तबियत नही मिली;चेहरों में दूसरों के तुझे ढूंढते रहे दर-ब-दरसूरत नही मिली, तो कहीं सीरत नही मिली;बहुत देर से आया था वो मेरे पास यारों;अल्फाज ढूंढने की भी मोहलत नही मिली;तुझे गिला था कि तवज्जो न मिली तुझे; मगर हमको तो खुद अपनी मुहब्बत नही मिली;.हमे तो तेरी हर आदत अच्छी लगी "फ़राज़"पर अफ़सोस तेरी आदत से मेरी आदत नही मिली।
दिन सलीके से उगादिन सलीके से उगा..दिन सलीके से उगा रात ठिकाने से रहीदोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रहीचंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखेजिंदगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रहीइस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगीरात, जंगल में कोई शम्मा जलाने से रहीफ़ासला, चाँद बना देता है हर पत्थर कोदूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रहीशहर में सबको कहाँ मिलती है रोने की जगहअपनी इज्ज़त भी यहाँ हंसने-हंसाने से रही
जो भी बुरा भला हैजो भी बुरा भला है..जो भी बुरा भला है अल्लाह जानता हैबंदे के दिल में क्या है अल्लाह जानता हैये फर्श-ओ-अर्श क्या है अल्लाह जानता हैपर्दों में क्या छिपा है अल्लाह जानता हैजाकर जहाँ से कोई वापिस नहीं है आतावो कौन सी जगह है अल्लाह जानता हैनेक़ी-बदी को अपने कितना ही तू छिपाएअल्लाह को पता है अल्लाह जानता हैये धूप-छाँव देखो ये सुबह-शाम देखोसब क्यों ये हो रहा है अल्लाह जानता हैक़िस्मत के नाम को तो सब जानते हैं लेकिन क़िस्मत में क्या लिखा है अल्लाह जानता है
ऐसे चुप हैऐसे चुप है..ऐसे चुप है कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसेतेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसेअपने ही साये से हर गाम लरज़ जाता हूँरास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसेकितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझेयाद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसेमंज़िलें दूर भी हैं, मंज़िलें नज़दीक भी हैंअपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसेआज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं 'फ़राज़'चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे
गुलों के साथ अजल केगुलों के साथ अजल के..गुलों के साथ अजल के पयाम भी आएबहार आई तो गुलशन में दाम भी आएहमीं न कर सके तज्दीद-ए-आरज़ू वरनाहज़ार बार किसी के पयाम भी आएचला न काम अगर चे ब-ज़ोम-ए-राह-बरीजनाब-ए-ख़िज़्र अलैहिस-सलाम भी आएजो तिश्ना-ए-काम-ए-अज़ल थे वो तिश्ना-काम रहेहज़ार दौर में मीना ओ जाम भी आएबड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए
ख़ुद को औरों की तवज्जो काख़ुद को औरों की तवज्जो का..ख़ुद को औरों की तवज्जो का तमाशा न करोआइना देख लो, अहबाब से पूछा न करोवह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुमसिर्फ जीते रहो, जीने की तमन्ना न करोजाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन कोपंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करोआगही बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों मेंराह चलते हुए लोगों से भी याराना करोचारागर छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम कोतुम को अच्छा जो न करना है, तो अच्छा न करोशेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहोदर्द की दौलते-नायाब को रुसवा न करो