तुने ये फूल जोतुने ये फूल जो..तुने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा हैएक दिया है जो अँधेरों में जला रखा हैजीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वालाज़िन्दगी ने मुझे दाओ पे लगा रखा हैजाने कब आये कोई दिल में झाँकने वालाइस लिये मैंने ग़िरेबाँ को खुला रखा हैइम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगेमैंने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है
ये चाँदनी भी जिन कोये चाँदनी भी जिन को..ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती हैदुनिया उन्हीं फूलों को पैरों से मसलती हैशोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा हैजिस डाल पर बैठे हो वो टूट भी सकती हैलोबान में चिंगारी जैसे कोई रख देयूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती हैआ जाता है ख़ुद खींच कर दिल सीने से पटरी परजब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती हैआँसू कभी पलकों पर तो देर तक नहीं रुकतेउड़ जाते हैं वे पंछी जब शाख़ लचकती हैख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आयेबिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है
कोई उस शहर मेंकोई उस शहर में..कोई उस शहर में कब था उसकाउसे यह ज़ो'म कि रब था उसकाउसकी रग-रग में उतरती रही आगउसके अंदर ही ग़ज़ब था उसकावही सिलसिला-ए-तार-ए-नफ़सवही जीने का सबब था उसकासिद्क़-जदा था वो शहज़ादा कमालबस यही नाम-ओ-नसब था उसकाTranslationज़ो'म= गर्सिद्क़= स
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ ..... अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा;जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा; ..मरने की, अय दिल, और ही तदबीर कर, कि मैं;शायान-ए-दस्त-ओ-बाज़ु-ए-का़तिल नहीं रहा;. वा कर दिए हैं शौक़ ने, बन्द-ए-नकाब-ए-हुस्न;ग़ैर अज़ निगाह, अब कोई हाइल नहीं रहा;..बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर असद ;.जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वो दिल नहीं रहा।
दिल में अब यूँदिल में अब यूँ...दिल में अब यूँ तेरे भूले हुए ग़म आते है;जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते है; रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो;सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते है;.और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो;दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते है; इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन;मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते है;.कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग;वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते है
फ़राज़ अब कोई सौदाफ़राज़ अब कोई सौदा.. फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं;. लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला.मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं.मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो ;जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं. "फ़राज़" जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है; तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं