प्यास वो दिल कीप्यास वो दिल की..प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहींकैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहींबेरुख़ी इससे बड़ी और भला क्या होगीएक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहींरोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देनेआज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहींसुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने.वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहींतुम तो शायर हो "क़तील" और वो इक आम सा शख़्स.उसने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं
कभी अकेले में मिलकभी अकेले में मिल..कभी अकेले में मिल कर झंझोड़ दूंगा उसेजहाँ-जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूंगा उसे;मुझे छोड़ गया ये कमाल है उस काइरादा मैंने किया था के छोड़ दूंगा उसेपसीने बांटता फिरता है हर तरफ सूरजकभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूंगा उसे.मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया कोसमझ रही थी के ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे.बचा के रखता है खुद को वो मुझ से शीशाबदन;उसे ये डर है के तोड़-फोड़ दूंगा उसे
कल रोक नहीं पाएकल रोक नहीं पाए..कल रोक नहीं पाए जिसे तीरों-तबर भी;.अब उसको थका देती है इक राहगुज़र भी;इस डर से कभी गौर से देखा नहीं तुझको;कहते हैं कि लग जाती है अपनों की नज़र भी;कुछ मेरी अना भी मुझे झुकने नहीं देती;कुछ इसकी इजाज़त नहीं देती है कमर भी;तुम सूखी हुई शाखों का अफ़सोस न करना;आँधी तो गिरा देती है मजबूत शजर भी;वो मुझसे वहाँ कीमते-जाँ पूछ रहा है;महफूज़ नहीं है जहाँ अल्लाह का घर भी
राज़े-उल्फ़त छुपा केराज़े-उल्फ़त छुपा के....राज़े-उल्फ़त छुपा के देख लियादिल बहुत कुछ, जला के देख लियाऔर क्या देखने को बाक़ी है; आप से दिल, लगा के देख लिया;वो मिरे हो के भी मेरे न हुएउनको अपना, बना के देख लिया;.आज उनकी नज़र में कुछ हमनेसबकी नज़रें बचा के, देख लिया;.आस उस दर से, टूटती ही नहीं;जा के देखा, न जा के देख लिया;.'फ़ैज़' तक़्मील-ए-ग़म भी हो न सकी;इश्क़ को आज़मा के, देख लिया
रहने को सदारहने को सदा...रहने को सदा दहर में आता नहीं कोईतुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई;एक बार तो खुद मौत भी घबरा गयी होगी;यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई;डरता हूँ कहीं खुश्क़ न हो जाए समुन्दर;राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई;साक़ी से गिला था तुम्हें मैख़ाने से शिकवा;अब ज़हर से भी प्यास बुझाता नहीं कोई;माना कि उजालों ने तुम्हे दाग़ दिए थे;बे-रात ढले शम्मा बुझाता नहीं कोई
बहुत पानी बरसता हैबहुत पानी बरसता है..बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती हैन रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती हैयही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थेयही मौसम हैं अब सीने में सर्दी बैठ जाती हैचलो माना कि शहनाई मोहब्बत की निशानी हैमगर वो शख़्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती हैबढ़े बूढ़े कुएँ में नेकियाँ क्यों फेंक आते हैंकुएँ में छुप के क्यों आख़िर ये नेकी बैठ जाती हैनक़ाब उलटे हुए गुलशन से वो जब भी गुज़रता हैसमझ के फूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है..