ये आलम शौक़ये आलम शौक़..ये आलम शौक़ का देखा न जायेवो बुत है या ख़ुदा देखा न जायेये किन नज़रों से तुम ने आज देखाके तेरा देखना देखा ना जायेहमेशा के लिये मुझ से बिछड़ जाये मन्ज़र बारहा देखा न जायेग़लत है जो सुना पर आज़मा करतुझे ऐ बावफ़ा देखा न जायेये महरूमी नहीं पास-ए-वफ़ा हैकोई तेरे सिवा देखा न जायेयही तो आश्ना बनते हैं आख़िरकोई नाआश्ना देखा न जाये'फ़राज़' अपने सिवा है कौन तेरातुझे तुझ से जुदा देखा न जाये
प्यास वो दिल कीप्यास वो दिल की..प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहींकैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहींबेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगीएक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहींरोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देनेआज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहींसुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर नेवो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहींतुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शख़्सउस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं
प्यास वो दिल कीप्यास वो दिल की..प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहींकैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहींबेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगीएक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहींरोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देनेआज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहींसुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर नेवो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहींतुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शख़्सउस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं
बदला न अपने आपकोबदला न अपने आपको..बदला न अपने आपको जो थे वही रहेमिलते रहे सभी से अजनबी रहेअपनी तरह सभी को किसी की तलाश थीहम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहेदुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुमथोड़ी बहुत तो जे़हन में नाराज़गी रहेगुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलोजिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहेहर वक़्त हर मकाम पे हँसना मुहाल हैरोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे।
ये चाँदनी भी जिन कोये चाँदनी भी जिन को..ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती हैदुनिया उंहीं फूलों कोपैरों से मसलती हैशोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा हैजिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती हैलोबान में चिंगारी जैसे कोई रख देयूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती हैआ जाता है ख़ुद खेँच कर दिल सीने से पटरी परजब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती हैआँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकतेउड़ जाते हैं उए पंछी जब शाख़ लचकती हैख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आयेबिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है
दिल में अब यूँदिल में अब यूँ..दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते है.जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते हैरक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो;सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते है;.और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो ;दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते है;.इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन ;मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते है;.कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग.वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते है।