की शायरी

ज़रा-ज़रा सी रंजिशे

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दुश्मन भी पेश

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टूटे हुए दिलों की

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वफ़ा के भेस में

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यार था गुलज़ार था

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या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा

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