ज़रा-ज़रा सी रंजिशेज़रा-ज़रा सी रंजिशे..ज़रा-ज़रा सी रंजिशेकभी दिल जला कभी जान भीमैं अपनों के काबिल ना रहाये जानते है अन्जान भीमेरे साथ अक्सर रहते हैकातिल मेरे मेहमान भीधरती पर जुल्म देख कररूठा है आसमान भीवो बदल गया खुदा सा जोफ़रिस्ता था बना शैतान् भीबस ज़रा-ज़रा सी रंजिशेना भुला सका इंसान भी
दुश्मन भी पेशदुश्मन भी पेश..दुश्मन भी पेश आए हैं दिलदार की तरहनफरत मिली है उनसे मुझे प्यार की तरहकैसे मिलेंगे चाहने वाले बताईयेदुनिया खड़ी है राह में दीवार की तरहवो बेवफ़ाई करके भी शर्मिंदा ना हुएसूली पे हम चढ़े हैं गुनहगार की तरहतूफ़ान में मुझ को छोड़ कर वो लोग चल दिएसाहिल पर थे जो साथ में पतवार की तरहचेहरे पर हादसों ने लिखीं वो इबारतेंपढ़ने लगा हर कोई मुझे अख़बार की तरहदुश्मन भी हो गए हैं मसीहा सिफ़त जमालमिलते हैं टूट कर वो गले यार की तरह
टूटे हुए दिलों कीटूटे हुए दिलों की..टूटे हुए दिलों की दुआ मेरे साथ हैदुनिया तेरी तरफ है ख़ुदा मेरे साथ हैआवाज़ घुंघरुओं की नहीं है तो क्या हुआसागर के टूटने की सदा मेरे साथ हैतन्हाई किस को कहते हैं मुझ को पता नहींक्या जाने किस हसीं की दुआ मेरे साथ हैपैमाना सामने है तो कुछ ग़म नहीं निज़ामअब दर्द-ए-दिल की कोई दवा मेरे साथ है
वफ़ा के भेस मेंवफ़ा के भेस में..वफ़ा के भेस में कोई रक़ीब-ए-शहर भी हैहज़र! के शहर के क़ातिल तबीब-ए-शहर भी हैवही सिपाह-ए-सितम ख़ेमाज़न है चारों तरफ़जो मेरे बख़्त में था अब नसीब-ए-शहर भी हैउधर की आग इधर भी पहुँच न जाये कहींहवा भी तेज़ है जंगल क़रीब-ए-शहर भी हैअब उसके हिज्र में रोते हैं उस के घायल भीख़बर न थी के वो ज़ालिम हबीब-ए-शहर भी हैये राज़ नारा-ए-मन्सूर ही से हम पे ख़ुलाके चूब-ए-मिम्बर-ए-मस्जिद सलीब-ए-शहर भी हैकड़ी है जंग के अब के मुक़ाबिले पे 'फ़राज़'अमीर-ए-शहर भी है और खतीब-ए-शहर भी है
यार था गुलज़ार थायार था गुलज़ार था..यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न थालायक़-ए-पा-बोस-ए-जाँ क्या हिना थी, मैं न थाहाथ क्यों बाँधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना थी, मैं न थामैंने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न्-ओ-शबाबहँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी, मैं न थामैं सिसकता रह गया और मर गये फ़रहाद-ओ-क़ैसक्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी, मैं न था
या मुझे अफ़्सर-ए-शाहाया मुझे अफ़्सर-ए-शाहा..या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा न बनाया होताया मेरा ताज गदाया न बनाया होताख़ाकसारी के लिये गरचे बनाया था मुझेकाश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ न बनाया होतानशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझकोउम्र का तंग न पैमाना बनाया होताअपना दीवाना बनाया मुझे होता तूनेक्यों ख़िरदमन्द बनाया न बनाया होताशोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उसनेवरना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता