अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ ​

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अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ ​....
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​अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा​;
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा​;​ ​
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मरने की, अय दिल, और ही तदबीर कर, कि मैं;
शायान-ए-दस्त-ओ-बाज़ु-ए-का़तिल नहीं रहा​;
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वा कर दिए हैं शौक़ ने, बन्द-ए-नकाब-ए-हुस्न​;
ग़ैर अज़ निगाह, अब कोई हाइल नहीं रहा​;​
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बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर असद ​;
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जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वो दिल नहीं रहा।

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