उसके क़दमों में:

उसके क़दमों में अब हयात रख के

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उसके क़दमों में
उसके क़दमों में अब हयात रख के
लौट आया मैं दिल की बात रख के
ये क्या कम है इतना जी गया हूँ मैं
उसके ग़म को अपने साथ रख के
वफ़ा ना कर पाया तेरी यादों से भी
रुखसत करता हूँ इन्हें रात रख के
लिख के इक ग़ज़ल फिर तुम्हारे लिए
सो गया हूँ सिरहाने जज़्बात रख के
रूह फिर से छटपटाने सी लगी है
वो आ बैठा है क़ब्र पे हाथ रख के

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