तुम न आये एक दिन..तुम न आये एक दिन का वादा कर दो दिन तलकहम पड़े तड़पा किये दो-दो पहर दो दिन तलकदर्द-ए-दिल अपना सुनाता हूँ कभी जो एक दिनरहता है उस नाज़नीं को दर्द-ए-सर दो दिन तलकदेखते हैं ख़्वाब में जिस दिन किस की चश्म-ए-मस्तरहते हैं हम दो जहाँ से बेख़बर दो दिन तलकगर यक़ीं हो ये हमें आयेगा तू दो दिन के बादतो जियें हम और इस उम्मीद पर दो दिन तलकक्या सबब क्या वास्ता क्या काम था बतलाइयेघर से जो निकले न अपने तुम "ज़फ़र" दो दिन तलक
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