इत्तेफ़ाक़ से ही सही मगर मुलाकात हो गयीइत्तेफ़ाक़ से ही सही मगर मुलाकात हो गयीढूंढ रहे थे हम जिन्हें आखिर उन से बात हो गयीदेखते ही उन को जाने कहाँ खो गए हमबस यूँ समझो दोस्तो वहीं से हमारे प्यार की शुरुआत हो गयी
रोज कहता हूँ न जाऊँगा कभी घर उसकेरोज कहता हूँ न जाऊँगा कभी घर उसकेरोज उस के कूचे में कोई काम निकल आता है
हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैंहम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैंन जाने उस से मिलने का इरादा कैसा लगता हैमैं धीरे धीरे उन का दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँवो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया हैवो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया हैबहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया हैउतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने सेतुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है
ज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देतीज़रा साहिल पे आकर वो थोड़ा मुस्कुरा देतीभंवर घबरा के खुद मुझ को किनारे पर लगा देतावो ना आती मगर इतना तो कह देती मैं आँऊगीसितारे, चाँद सारा आसमान राह में बिछा देता
भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'शकील'भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'शकील'आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए