बंद आँखों से न हुस्न-ए-शब का अंदाज़ा लगामहमिल-ए-दिल से निकल सर को हवा ताज़ा लगादेख रह जाए न तू ख़्वाहिश के गुम्बद में असीरघर बनाता है तो सब से पहले दरवाज़ा लगाहाँ समंदर में उतर लेकिन उभरने की भी सोचडूबने से पहले गहराई का अंदाज़ा लगाहर तरफ़ से आएगा तेरी सदाओं का जवाबचुप के चंगुल से निकल और एक आवाज़ा लगासर उठा कर चलने की अब याद भी बाक़ी नहींमेरे झुकने से मेरी ज़िल्लत का अंदाज़ा लगारहम खा कर 'अर्श' उस ने इस तरफ़ देखा मगरये भी दिल दे बैठने का मुझ को ख़मियाज़ा लगा
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