वफ़ा के ख्वाब..वफ़ा के ख्वाब मुहब्बत का आसरा ले जाअगर चला है तो जो कुछ मुझे दिया है ले जामक़ाम-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ आ गया है फिर जानमयह ज़ख़्म मेरे सही तु तीर उठा ले जायही है क़िस्मत-ए-सहारा यही करम तेराकि बूँद-बूँद अदा कर घटा-घटा ले जागुरुर-ए-दोस्त से इतना भी दिलशिकस्ता ना होफिर उठ के सामने दामन-ए-इल्तजा ले जानादमतें हों तो सर बार-ए-दोष होता है'फ़र्ज़' जान के एवज़ आबरू बचा ले जा
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