​अपनी मर्ज़ी से कहाँ​

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​अपनी मर्ज़ी से कहाँ​..
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​​​अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम है​;
​रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम है​;

​​पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है​;
​अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम है​;

​​वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से​;
​किसको मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं​;

​​चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब​;
​सोचते रहते हैं किस राहग़ुज़र के हम है​

This is a great अपने पराये शायरी. If you like मिट्टी की शायरी then you will love this. Many people like it for शायरी सफ़र पर. Share it to spread the love.

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