अपनी मर्ज़ी से कहाँअपनी मर्ज़ी से कहाँ...अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम है;रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम है;पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है;अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम है;वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से;किसको मालूम कहाँ के हैं, किधर के हम हैं;चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब;सोचते रहते हैं किस राहग़ुज़र के हम है
कठिन है राह-गुज़रकठिन है राह-गुज़र... .कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो;बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो; .तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है;ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो; .नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं;बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो
वापसी का सफ़र अब मुमकिन न होगा।वापसी का सफ़र अब मुमकिन न होगाहम तो निकल चुके हैं - आँख से आंसू की तरह
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैंअपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैंरुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं;पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता हैं;अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं
बिना लिबास आए थे इस जहां मेंबिना लिबास आए थे इस जहां में;बस एक कफ़न की खातिर;इतना सफ़र करना पड़ा