जाने कब से तरस रहे है

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जाने कब से तरस रहे ह
जाने कब से तरस रहे हैं, हम खुल कर मुस्कानें को
इतने बन्धन ठीक नहीं हैं, हम जैसे दीवानों को
लिये जा रहे हो दिल मेरा, लेकिन इतना याद रहे
बेच न देना बाज़ारों में, इस अनमोल ख़जाने को
तन की दूरी तो सह लूँगा, मन की दूरी ठीक नहीं
प्यार नहीं कहते हैं केवल, आँखों के मिल जाने को
यह अपना दुर्भाग्य विधाता, ने तन दिया अभावों का
मन दे दिया किसी राजा का, जग में प्यार लुटाने को
सुख-दुख अगर देखना है तो, अपने चेहरे में देखो
होंठ मिले हैं मुस्कानें को, आँखें अश्क़ बहाने को।

This is a great जाने वाले शायरी.

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