इंसान को बोलना सीखने में दो साल लग जाते हैं इंसान को बोलना सीखने में दो साल लग जाते है...लेकिन "क्या बोलना है?"...यह सीखने में पूरी ज़िन्दगी निकल जाती है
कुछ सफ़र ज़िन्दगी के ऐसे होते हैकुछ सफ़र ज़िन्दगी के ऐसे होते है....!....जिसमें पैर नहीं दिल थक जाते है¶¶
मुझे सोते हुएमुझे सोते हुए..मुझे सोते हुए जगाना मत कभीमुझे गहरी नींद सोने की आदत हैमुझे भूल कर भी हँसाना मत कभीहंसने के बाद मुझे रोने की आदत हैज़िन्दगी में मेरी कभी आना मत ए दोस्तक्योंकि मुझे खोने की आदत है
उँगलियाँ यूँ न सब परउँगलियाँ यूँ न सब पर..उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करोखर्च करने से पहले कमाया करोज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगेबारिशों में पतंगें उड़ाया करोदोस्तों से मुलाक़ात के नाम परनीम की पत्तियों को चबाया करोशाम के बाद जब तुम सहर देख लोकुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करोअपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर;आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करोचाँद सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो।
ज़िन्दगी से यही ग़िलाज़िन्दगी से यही ग़िला..ज़िन्दगी से यही ग़िला है मुझेतू बहुत देर से मिला है मुझेहमसफ़र चाहिए हुजूम नहींमुसाफ़िर ही काफ़िला है मुझेदिल धड़कता नहीं सुलगता हैवो जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझेलबकुशा हूँ तो इस यक़ीन के साथक़त्ल होने का हौसला है मुझेकौन जाने कि चाहतों में 'फ़राज़'क्या गँवाया है क्या मिला है मुझे
हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे हैं मुझेहर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे हैं मुझेये ज़िन्दगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझेजो आँसू में कभी रात भीग जाती हैबहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझेमैं सो भी जाऊँ तो मेरी बंद आँखों मेंतमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझेमैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँवो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझेमैं सोचता था कि लौटूँगा अजनबी की तरहये मेरा गाँव तो पहचाना सा लगे है मुझेबिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूदहर एक फ़र्द कोई सानेहा लगे है मुझे