ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्नाग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्नाथी आरजू तेरे दर पे सुबह-ओ-शाम करेंग़म-ए-हयात = ज़िन्दगी का ग़
तेरा मुस्कुराना नहीं:तेरा मुस्कुराना नहींतेरा मुस्कुराना नहीं भूलता हैवो नज़रें झुकाना नहीं भूलता हैमेरी ख़ाबगाह में मेरी जान का वोदबे पाँव आना नहीं भूलता हैकि शर्मा के दांतों तले फिर तुम्हारावो ऊँगली दबाना नहीं भूलता हैवो गेसू सुखाना तेरा छत पे आ केक़यामत गिराना नहीं भूलता हैलिपटना मेरे साथ आकर तुम्हारावो मंज़र सुहाना नहीं भूलता हैमुहब्बत निभाता दिलो-ओ-जाँ से 'सागर'पुराना ज़माना नहीं भूलता है
किसी की चाहत में इतने पागल न होकिसी की चाहत में इतने पागल न होहो सकता है वो आपकी मंज़िल न होउसकी मुस्कुराहट को मोहब्बत न समझनाहो सकता है मुस्कुराना उसकी आदत ही हो
एक वफ़ा को पाने की कोशिश मेंएक वफ़ा को पाने की कोशिश मेंज़ख़्मी होती हैं वफ़ाएं कितनीकितना मासूम सा लगता है लफ्ज़ मोहब्बत काऔर इस लफ्ज़ से मिलती हैं सजाएं कितनी
ग़म में हँसने वालों को कभी रुलाया नहीं जाताग़म में हँसने वालों को कभी रुलाया नहीं जातालहरों से पानी को हटाया नहीं जाताहोने वाले हो जाते हैं खुद ही दिल से जुदाकिसी को जबर्दस्ती दिल में बसाया नहीं जाता
तमाम उम्र मेरी ज़िंदगीतमाम उम्र मेरी ज़िंदगतमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआहुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआकई थे लोग किनारों से देखने वालेमगर मैं डूब गया था, किसी से कुछ न हुआहमें ये फ़िक्र के मिट्टी के हैं मकां अपनेउन्हें ये रंज कि बहती नदी से कुछ न हुआरहे वो क़ैद किसी ग़ैर के ख़यालों मेंयही वजह कि मेरी बेरुख़ी से कुछ न हुआलगी जो आग तो सोचा उदास जंगल नेहवा के साथ रही दोस्ती से कुछ न हुआमुझे मलाल बहुत टूटने का है लेकिनकरूँ मैं किससे गिला जब मुझी से कुछ न हुआ।