तमाम उम्र मेरी ज़िंदगी

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तमाम उम्र मेरी ज़िंदग
तमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआ
हुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआ
कई थे लोग किनारों से देखने वाले
मगर मैं डूब गया था, किसी से कुछ न हुआ
हमें ये फ़िक्र के मिट्टी के हैं मकां अपने
उन्हें ये रंज कि बहती नदी से कुछ न हुआ
रहे वो क़ैद किसी ग़ैर के ख़यालों में
यही वजह कि मेरी बेरुख़ी से कुछ न हुआ
लगी जो आग तो सोचा उदास जंगल ने
हवा के साथ रही दोस्ती से कुछ न हुआ
मुझे मलाल बहुत टूटने का है लेकिन
करूँ मैं किससे गिला जब मुझी से कुछ न हुआ।

This is a great उम्र की शायरी. If you like मेरी खामोशी शायरी then you will love this. Many people like it for ज़िंदगी की शायरी.

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