धीरे धीरे उम्र कट जाती है ज़िन्दगी यादों की किताब बन जाती है कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है और कभी यादों के सहारे ज़िन्दगी कट जाती है - किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते, फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते.... -जी लो इन पलों को हस के जनाब, फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते....।
एक पति की कलम से.... "मेरी पत्नी शिक्षक नही, पर बच्चों की सबसे बड़ी गुरु वही है । वो चिकित्सक भी नही, पर हमारे हर मर्ज का इलाज है उसके पास। वो एम.बी.ए. भी नही, पर घर/बाहर का मेनेजमेन्ट जानती है बखूबी । वो गणित मे कमजोर थी, फिर भी दुखों का घटाव और खुशियों का जोड़ गुणा जाने कैसे करती थी..? उसके पास कोई डिग्री नही, पर लगता है उससे बड़ा कोई संस्थान नही। ऎसा संस्थान जहाँ बच्चों का हर "डाटा ""फीड " है, मुझ तक हर सूचना वहीं से आती है। मैं अपने पिता ब्रम्ह होने का गर्व करूं, तब तक मानो वह सृष्टि ही रच आती है।
सत्य वचन किसी की बुराई तलाश करने वाले इंसान की मिसाल उस "मक्खी" सी है जो सारे खूबसूरत जिस्म को छोड़कर केवल जख्म पर ही बैठती है....
इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिले, और परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिले... 'कर्मो' से ही पहेचान होती है इंसानो की... महेंगे 'कपडे' तो, 'पुतले' भी पहनते है दुकानों में !!
झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है। एकदम बराबर। सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं। जिंदगी का झूला पीछे जाए, तो डरो मत, वह आगे भी आएगा। अपनी सहज साधना में रुकावट मत आने देना।
जूठे बरतनों के ढेर से घबराकर महिला बोली, "हे ईश्वर! यह अलादीन का जादुई चिराग पुरुषों को मिलता है, किसी महिला को क्यों नहीं मिलता? कोई जिन्न होता जो हमारा भी हाथ बंटा दिया करता।" महिला की यह पुकार सुन ईश्वर स्वयं प्रकट हुए और बोले, "नियम के अनुसार एक महिला को एक बार में एक ही जिन्न मिल सकता है और हमारा रिकॉर्ड कहता है तुम्हारी शादी हो गयी है....... तुम्हें तुम्हारा जिन्न मिल चुका है। उसे अभी-अभी तुमने सब्जी मंडी भेजा है, रास्ते में टेलर से तुम्हारी साडी लेते हुए, मकान मालिक को किराया देते हुए, तुम्हारे लिये झंडु बाम लायेगा, फिर काम पर जायेगा। वो मिनी जिन्न अर्थात पति थोड़ा टाइम खाऊ है, मगर चिराग वाले जिन्न से ज्यादा उपयोगी और टिकाऊ है।"
अगर विवाह के पश्चात भी माँ पापा को साथ रखने का अधिकार बेटी के पास होता ...... तो मेरा दावा है दोस्तों इस संसार में एक भी व्रद्ध आश्रम नही होता
कपड़े हो गए छोटे लाज कहा से आए अन्न हो गया हाइब्रिड ताकत कहा से आए फूल हो गए प्लास्टिक के खुशबू कहा से आए चेहरा हो गया मेकअप का रूप कहाँ से आए शिक्षक हो गए टयुशन के विद्या कहाँ से आए भोजन हो गए होटल के तंदरुस्ती कहाँ से आए प्रोग्राम हो गए केबल के संस्कार कहाँ से आए आदमी हो गए पैसे के दया कहाँ से आए धंधे हो गए हायफाय बरकत कहाँ से आए भक्ति करने वाले स्वार्थी हो गए भगवान कहाँ से आए मित्र हो गया व्हाट्सऐप के मिलने कहाँ से आए