मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों मेंरहा करती है शादाबी ख़ज़ाँ के भी महीनों मेंज़िया-ए-महर आँखों में है तौबा मह-जबीनों मेंके फ़ितरत ने भरा है हुस्न ख़ुद अपना हसीनों मेंहवा-ए-तुंद है गर्दाब है पुर-शोर धारा हैलिए जाते हैं ज़ौक-ए-आफ़ियत सी शय सफीनों मेंमैं उन में हूँ जो हो कर आस्ताँ-ए-दोस्त से महरूमलिए फिरते हैं सजदों की तड़प अपनी जबीनों मेंमेरी ग़ज़लें पढ़ें सब अहल-ए-दिल और मस्त हो जाएँमय-ए-जज़्बात लाया हूँ मैं लफ़्ज़ी आब-गीनों में
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