फांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था..फांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न थासामने बैठा था मेरे और वो मेरा न थावो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार सूमैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न थारात भर पिछली ही आहट कान में आती रहीझाँक कर देखा गली में कोई भी आया न थाख़ुद चढ़ा रखे थे तन पर अजनबीयत के गिलाफ़वर्ना कब एक दूसरे को हमने पहचाना न थायाद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था
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