तेरी किताब के हर्फ़ेतेरी किताब के हर्फ़े समझ नहीं आतेऐ ज़िन्दगी तेरे फ़लसफ़े समझ नहीं आतेकितने पन्नें हैं, किसको संभाल कर रखूँऔर कौन से फाड़ दूँ सफे, समझ नहीं आतेचौंकाया है ज़िन्दगी यूँ हर मोड़ पर तुमनेबाक़ी कितने हैं शगूफे समझ नहीं आतेहम तो ग़म में भी ठहाके लगाया करते थेअब आलम ये है कि लतीफे समझ नहीं आतेतेरा शुकराना जो हर नेमत से नवाज़ा मुझकोपर जाने क्यों अब तेरे तोहफ़े समझ नहीं आते