गम-ए-जिंदगी कोगम-ए-जिंदगी को इस कदर सँवार लेते हैंजाम होंठो से जिगर तक उतार लेते हैंतबाह होने की चाह में क्या-क्या करें हमएक रोग नया तेरे इश्क का आज़ार लेते हैंमाना कि फांसलों से ही नजदीकीयाँ अपनी मगरदिल कहे, सुनेंगे कभी, एक दफा पुकार लेते हैएक भी काम ना आया मशवरा तुझे भुलने कामगर, तेरी याद के लम्हें वक्त से बेशुमार लेते हैंये मय ही तो हमदर्द , हमसफर मेरा अब साक़ीदर्द मिटाने को दवा कहा इश्क के बीमार लेते हैं