हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुमसे ज्यादा,चाक किये हैं हमने अज़ीज़ों चार गरेबाँ तुमसे ज्यादाचाक-ए-जिगर मुहताज-ए-रफ़ू है आज तो दामन सिर्फ़ लहू हैएक मौसम था हम को रहा है शौक़-ए-बहाराँ तुमसे ज्यादाजाओ तुम अपनी बाम की ख़ातिर सारी लवें शमों की कतर लोज़ख़्मों के महर-ओ-माह सलामत जश्न-ए-चिराग़ाँ तुमसे ज्यादाज़ंजीर-ओ-दीवार ही देखी तुमने तो "मजरूह" मगर हमकूचा-कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुमसे ज्यादा
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