मेरे क़ाबू में नमेरे क़ाबू में न..मेरे क़ाबू में न पहरों दिल-ए-नाशाद आयावो मेरा भूलने वाला जो मुझे याद आयादी मुअज्जिन ने शब-ए-वस्ल अज़ान पिछली रातहाए कम-बख्त के किस वक्त ख़ुदा याद आयालीजिए सुनिए अब अफ़साना-ए-फुर्कत मुझ सेआप ने याद दिलाया तो मुझे याद आयाआप की महिफ़ल में सभी कुछ है मगर 'दाग़' नहींमुझ को वो ख़ाना-ख़राब आज बहुत याद आया
ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देतेख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देतेसच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देतेआँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देतेअरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देतेकिस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्लतुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देतेपरवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोलेक्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देतेहैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्नादुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देतेदिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्तहम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते
कब याद मे तेरा साथ नहींकब याद मे तेरा साथ नहीं, कब हाथ में तेरा हाथ नहींसाद शुक्र की अपनी रातो में अब हिज्र की कोई रात नहींमुश्किल है अगर हालत वह, दिल बेच आए, जा दे आएदिल वालो कूचा-ए-जाना में, क्या ऐसे भी हालात नहींजिस धज से कोई मकतल में गया, वो शान सलामत रहती हैये जान तो आनी-जानी है, इस जान की तो कोई बात नहींमैदान-ए-वफ़ा दरबार नहीं, या नाम-ओ-नसब की पूछ कहाँ;आशिक तो किसी का नाम नहीं, कुछ इश्क किसी की जात नहींगर बाज़ी इश्क की बाज़ी है, ओ चाहो लगा दो दर कैसागर जीत गए तो क्या कहने, हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगेकितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगेउस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा;यूँ ही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगेबंद रहे जिन का दरवाज़ा ऐसे घरों की मत पूछोदीवारें गिर जाती होंगी आँगन रह जाते होंगेमेरी साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएंगेयानी मेरे बाद भी यानी साँस लिये जाते होंगेयारो कुछ तो बात बताओ उस की क़यामत बाहों कीवो जो सिमटते होंगे इन में वो तो मर जाते होंगे
हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुमसे ज्यादाहम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुमसे ज्यादा,चाक किये हैं हमने अज़ीज़ों चार गरेबाँ तुमसे ज्यादाचाक-ए-जिगर मुहताज-ए-रफ़ू है आज तो दामन सिर्फ़ लहू हैएक मौसम था हम को रहा है शौक़-ए-बहाराँ तुमसे ज्यादाजाओ तुम अपनी बाम की ख़ातिर सारी लवें शमों की कतर लोज़ख़्मों के महर-ओ-माह सलामत जश्न-ए-चिराग़ाँ तुमसे ज्यादाज़ंजीर-ओ-दीवार ही देखी तुमने तो "मजरूह" मगर हमकूचा-कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुमसे ज्यादा
ये किसने गला घोंट दिया जिन्दादिली काये किसने गला घोंट दिया जिन्दादिली काचेहरे पे हँसी है कि जनाजा है हँसी काहर हुस्न में उस हुस्न की हल्की सी झलक हैदीदार का हक मुझको है जल्वा हो किसी कारक्साँ है कोई हूर कि लहराती है सहबा,उड़ना कोई देखे मिरे शीशे की परी काजब रात गले मिलके बिछड़ती है सहर सेयाद आता है मंजर तेरी रूखसत की घड़ी काउन आँखों के पैमानों से छलकी जो जरा सीमैखाने में होश उड़ गया शीशे की परी कारूस्वा है 'नजीर' अपने ही बुतखाने की हद में,दीवाना अगर है तो बनारस की गली का