हमारी ज़िन्दगी का..हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता हैकभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है;.दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो;कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है;इसी उलझन में अकसर रात आँखों में गुज़रती है;बरेली को बचाते हैं तो नैनीताल कटता है;.कभी रातों के सन्नाटे में भी निकला करो घर से;कभी देखा करो गाड़ी से कैसे माल कटता है;.सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता;कभी कश्मीर जाता है कभी बंगाल कटता है
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