तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म..तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैकिसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैहदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैतो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैहर अजनबी हमें महरम दिखाई देता हैजो अब भी तेरी गली गली से गुज़रने लगते हैंसबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतनतो चश्म-ए-सुबह में आँसू उभरने लगते हैंवो जब भी करते हैं इस नुत्क़-ओ-लब की बख़ियागरीफ़ज़ा में और भी नग़्में बिखरने लगते हैंदर-ए-क़फ़स पे अँधेरे की मुहर लगती हैतो "फ़ैज़" दिल में सितारे उतरने लगते है
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