उसकी बातों पे मुझेउसकी बातों पे मुझे...उसकी बातों पे मुझे आज यकीं कुछ कम हैये अलग है कि वो चर्चे में नहीं कुछ कम हैजब से दो चार नए पंख लगे हैं; उगनेतब से कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम हैमैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सहीजो ज्यादा है जहां वो ही वहीं कुछ कम हैमुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखोकहीं कुछ चीज ज्यादा है कहीं कुछ कम हैदेख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुएजो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है
हवा का ज़ोर भीहवा का ज़ोर भी..हवा का ज़ोर भी काफ़ी बहाना होता है;अगर चिराग किसी को जलाना होता है;ज़ुबानी दाग़ बहुत लोग करते रहते हैं;जुनूँ के काम को कर के दिखाना होता है;हमारे शहर में ये कौन अजनबी आया;कि रोज़ सफ़र पे रवाना होता है;कि तू भी याद नहीं आता ये तो होना था;गए दिनों को सभी को भुलाना होता है
फ़ासले ऐसे भी होंगेफ़ासले ऐसे भी होंगे..फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न थासामने बैठा था मेरे और वो मेरा न थावो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार सूमैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न थारात भर पिछली ही आहट कान में आती रहीझाँक कर देखा गली में कोई भी आया न थाख़ुद चढ़ा रखे थे तन पर अजनबीयत के गिलाफ़वर्ना कब एक दूसरे को हमने पहचाना न थायाद कर के और भी तकलीफ़ होती थी'अदीम'भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था
हो गई है पीर पर्वत-सीहो गई है पीर पर्वत-सी....हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिएइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए;आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी;शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए;.हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव मेंहाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए;सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं;सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए;.मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही;हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्मतुम्हारी याद के जब ज़ख़्म..तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैकिसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैहदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैतो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैहर अजनबी हमें महरम दिखाई देता हैजो अब भी तेरी गली गली से गुज़रने लगते हैंसबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतनतो चश्म-ए-सुबह में आँसू उभरने लगते हैंवो जब भी करते हैं इस नुत्क़-ओ-लब की बख़ियागरीफ़ज़ा में और भी नग़्में बिखरने लगते हैंदर-ए-क़फ़स पे अँधेरे की मुहर लगती हैतो "फ़ैज़" दिल में सितारे उतरने लगते है
मेरे क़ाबू में नमेरे क़ाबू में न..मेरे क़ाबू में न पेहरों दिल-ए-नाशाद आयावो मेरा भूलने वाला जो मुझे याद आयादिल-ए-वीराँ से रक़ीबों ने मुरादें पाईंकाम किस किस के मेरा ख़िर्मन-ए-बर्बाद आयालीजिये सुनिये अब अफ़साना-ए-फ़ुर्क़त मुझ सेआप ने याद दिलाया तो मुझे याद आयादी मु'अज़्ज़िन ने अज़ाँ वस्ल की शब पिछले पहरहाये कमबख़्त को किस वक़्त ख़ुदा याद आयाबज़्म में उन के सभी कुछ है मगर "दाग़" नहींमुझ को वो ख़ाना-ख़राब आज बहुत याद आया।