मुझ पर नहीं उठे हैं​

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मुझ पर नहीं उठे हैं​...


मुझ पर नहीं उठे हैं तो उठकर कहाँ गए​​

मैं शहर में नहीं था तो पत्थर कहाँ गए​​;​
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मैं खुद ही मेज़बान हूँ मेहमान भी हूँ ख़ुद​​

सब लोग मुझको घर पे बुलाकर कहाँ गए​​
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ये कैसी रौशनी है कि एहसास बुझ गया​​

हर आँख पूछती है कि मंज़र कहाँ गए​​;​
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पिछले दिनों की आँधी में गुम्बद तो गिर चुका​​
​अल्लाह जाने सारे कबूतर कहाँ गए​

This is a great एहसास पर शायरी. If you like कहाँ हो तुम शायरी then you will love this. Many people like it for जाने वाले शायरी.

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