मुझ पर नहीं उठे हैंमुझ पर नहीं उठे हैं... मुझ पर नहीं उठे हैं तो उठकर कहाँ गएमैं शहर में नहीं था तो पत्थर कहाँ गए;. मैं खुद ही मेज़बान हूँ मेहमान भी हूँ ख़ुदसब लोग मुझको घर पे बुलाकर कहाँ गए. ये कैसी रौशनी है कि एहसास बुझ गया हर आँख पूछती है कि मंज़र कहाँ गए; पिछले दिनों की आँधी में गुम्बद तो गिर चुकाअल्लाह जाने सारे कबूतर कहाँ गए
दर्द है दिल में पर इसका एहसास नहीं होतादर्द है दिल में पर इसका एहसास नहीं होतारोता है दिल जब वो पास नहीं होता
एहसास बहुत होगा जब छोड़ के जाएंगेएहसास बहुत होगा जब छोड़ के जाएंगेरोयेंगे बहुत मगर आँसू नहीं आएँगेजब साथ कोई ना दे तो आवाज़ हमें देनाआसमान पर होंगे तो भी लौट के आएंगे