सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा..सितम सिखलाएगा रस्मे-वफ़ा ऐसे नहीं होतासनम दिखलाएँगे राहे-ख़ुदा ऐसे नहीं होतागिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़तल मेंमेरे क़ातिल हिसाबे-खूँबहा ऐसे नहीं होताजहाने दिल में काम आती हैं तदबीरें न ताज़ीरेंयहाँ पैमाने-तस्लीमो-रज़ा ऐसे नहीं होताहर इक शब हर घड़ी गुजरे क़यामत, यूँ तो होता हैमगर हर सुबह हो रोजे़-जज़ा, ऐसे नहीं होतारवाँ है नब्ज़े-दौराँ, गार्दिशों में आसमाँ सारेजो तुम कहते हो सब कुछ हो चुका, ऐसे नहीं होता
This is a great सितम पर शायरी.