यार था गुलज़ार था..यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न थालायक़-ए-पा-बोस-ए-जाँ क्या हिना थी, मैं न थाहाथ क्यों बाँधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना थी, मैं न थामैंने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न्-ओ-शबाबहँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी, मैं न थामैं सिसकता रह गया और मर गये फ़रहाद-ओ-क़ैसक्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी, मैं न था
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