देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करनाशेवा-ए-इश्क़ नहीं हुस्न को रुसवा करनाएक नज़र ही तेरी काफ़ी थी कि आई राहत-ए-जान;कुछ भी दुश्वार न था मुझ को शकेबा करना;उन को यहाँ वादे पे आ लेने दे ऐ अब्र-ए-बहार;जिस तरह चाहना फिर बाद में बरसा करना;शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रख लेदिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करनाकुछ समझ में नहीं आता कि ये क्या है 'हसरत'उन से मिलकर भी न इज़हार-ए-तमन्ना करना
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