इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गएउन की सहेलियों के भी आँचल भिगो गएचौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगरजो लोग नामवर थे वो पत्थर के हो गएसब देख कर गुज़र गए एक पल में और हमदीवार पर बने हुए मंज़र में खो गएमुझ को भी जागने की अज़ीयत से दे नजातऐ रात अब तो घर के दर ओ बाम सो गएकिस किस से और जाने मोहब्बत जताते हमअच्छा हुआ कि बाल ये चाँदी के हो गएइतनी लहू-लुहान तो पहले फ़ज़ा न थीशायद हमारी आँखों में अब ज़ख़्म हो गएइख़्लास का मुज़ाहिरा करने जो आए थे'अज़हर' तमाम ज़ेहन में काँटे चुभो गए
This is a great जुदा होना शायरी.