ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोईइसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोईये न पूछो कि ग़म-ए-हिज्र में कैसी गुज़री;दिल दिखाने का हो तो दिखाए कोईहो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त पहुँचाआपकी तरह से मेहमान बुलाए कोईतर्क-ए-बेदाद की तुम दाद न पाओ मुझसेकरके एहसान, न एहसान जताए कोईक्यों वो मय-दाख़िल-ए-दावत ही नहीं ऐ वाइज़मेहरबानी से बुलाकर जो पिलाए कोईसर्द-मेहरी से ज़माने के हुआ है दिल सर्दरखकर इस चीज़ को क्या आग लगाए कोईआपने 'दाग़' को मुँह भी न लगाया, अफ़सोसउसको रखता था कलेजे से लगाए कोई
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