ये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोईये जो है हुक़्म मेरे पास न आए कोईइसलिए रूठ रहे हैं कि मनाए कोईये न पूछो कि ग़म-ए-हिज्र में कैसी गुज़री;दिल दिखाने का हो तो दिखाए कोईहो चुका ऐश का जलसा तो मुझे ख़त पहुँचाआपकी तरह से मेहमान बुलाए कोईतर्क-ए-बेदाद की तुम दाद न पाओ मुझसेकरके एहसान, न एहसान जताए कोईक्यों वो मय-दाख़िल-ए-दावत ही नहीं ऐ वाइज़मेहरबानी से बुलाकर जो पिलाए कोईसर्द-मेहरी से ज़माने के हुआ है दिल सर्दरखकर इस चीज़ को क्या आग लगाए कोईआपने 'दाग़' को मुँह भी न लगाया, अफ़सोसउसको रखता था कलेजे से लगाए कोई
जिसको भी चाहा उसे शिद्दत से चाहा है 'फ़राज़'जिसको भी चाहा उसे शिद्दत से चाहा है 'फ़राज़'सिलसिला टूटा नहीं है दर्द की ज़ंजीर का
दर्द कितने हैं यह बता नहीं सकतादर्द कितने हैं यह बता नहीं सकताज़ख़्म हैं कितने यह भी दिखा नहीं सकताआँखों से समझ सको तो समझ लोआँसू गिरे हैं कितने यह गिना नहीं सकता
अब तो ये भी नहीं रहा एहसास दर्द होता है या नहीं होताअब तो ये भी नहीं रहा एहसास दर्द होता है या नहीं होताइश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा आदमी काम का नहीं होता
दर्द आँखों में झलक जाता है पर होंठों तक नहीं आतादर्द आँखों में झलक जाता है पर होंठों तक नहीं आताये मज़बूरी है मेरे इश्क़ की जो मिलता है खो जाता हैउसे भूलने का जज़्बा तो हर रोज़ दिल में आता हैपर कैसे भुला दे दिल, हर जर्रे में उसको पाता है
दिल के दर्द को दिल तोड़ने वाले क्या जानेदिल के दर्द को दिल तोड़ने वाले क्या जानेप्यार की रस्मों को यह ज़माने वाले क्या जानेहोती है कितनी तकलीफ कब्र के नीचेयह ऊपर से फूल चढ़ाने वाले क्या जाने