कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैंमोहब्बतों के भी मौसम अजीब होते हैंज़िहानतों को कहाँ वक़्त ख़ूँ बहाने काहमारे शहर में किरदार क़त्ल होते हैंफ़ज़ा में हम ही बनाते हैं आग के मंज़रसमंदरों में हमीं कश्तियाँ डुबोते हैंपलट चलें के ग़लत आ गए हमीं शायदरईस लोगों से मिलने के वक़्त होते हैंमैं उस दियार में हूँ बे-सुकून बरसों सेजहाँ सुकून से अजदाद मेरे सोते हैंगुज़ार देते हैं उम्रें ख़ुलूस की ख़ातिरपुराने लोग भी 'अज़हर' अजीब होते हैं
This is a great रोते रोते शायरी.