कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैंकभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैंमोहब्बतों के भी मौसम अजीब होते हैंज़िहानतों को कहाँ वक़्त ख़ूँ बहाने काहमारे शहर में किरदार क़त्ल होते हैंफ़ज़ा में हम ही बनाते हैं आग के मंज़रसमंदरों में हमीं कश्तियाँ डुबोते हैंपलट चलें के ग़लत आ गए हमीं शायदरईस लोगों से मिलने के वक़्त होते हैंमैं उस दियार में हूँ बे-सुकून बरसों सेजहाँ सुकून से अजदाद मेरे सोते हैंगुज़ार देते हैं उम्रें ख़ुलूस की ख़ातिरपुराने लोग भी 'अज़हर' अजीब होते हैं
एक बार रोये तो रोते चले गएएक बार रोये तो रोते चले गएदामन अश्कों से भिगोते चले गएजब जाम मिला बेवफाई का तोखुद को पैमाने में डुबोते चले गए
मैंने पत्थरों को भी रोते देखा है झरने के रूप मेंमैंने पत्थरों को भी रोते देखा है झरने के रूप मेंमैंने पेड़ों को प्यासा देखा है सावन की धूप मेंघुल-मिल कर बहुत रहते हैं लोग जो शातिर हैं बहुतमैंने अपनों को तनहा देखा है बेगानों के रूप में
तड़पते हैं न रोते हैं न हम फ़रियाद करते हैंतड़पते हैं न रोते हैं न हम फ़रियाद करते हैंसनम की याद में हर-दम ख़ुदा को याद करते हैंउन्हीं के इश्क़ में हम नाला-ओ-फ़रियाद करते हैंइलाही देखिये किस दिन हमें वो याद करते हैं
उसकी याद में हम बरसों रोते रहेउसकी याद में हम बरसों रोते रहेबेवफ़ा वो निकले बदनाम हम होते रहेप्यार में मदहोशी का आलम तो देखियेधूल चेहरे पे थी और हम आईना साफ़ करते रहे
रोते रहे तुम भीरोते रहे तुम भी, रोते रहे हम भीकहते रहे तुम भी और कहते रहे हम भीना जाने इस ज़माने को हमारे इश्क़ से क्या नाराज़गी थीबस समझाते रहे तुम भी और समझाते रहे हम भी