जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा..जब रूख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठाबन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठाडूबी जाती है ज़ब्त की कश्तीदिल में तूफ़ान-ए-इजि़्तराब उठामरने वाले फ़ना भी पर्दा हैउठ सके गर तो ये हिजाब उठाहम तो आँखों का नूर खो बैठेउन के चेहरे से क्या नक़ाब उठाआलम-ए-हुस्न-ए-सादगी तौबाइश्क़ खा खा के पेच-ओ-ताब उठाहोश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ 'एहसान'ला उठा शीशा-ए-शराब उठा
This is a great नक़ाब पर शायरी.