क्या भला मुझ को... . क्या भला मुझ को परखने का नतीज़ा निकला ;.ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला;..तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने;तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला;..जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने;बू-उड़ी धूप से, तसवीर से साया निकला;..तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर;डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला
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