गम-ए-ज़ज़्बात से घायल:

SHARE

गम-ए-ज़ज़्बात से घायल
गम-ए-ज़ज़्बात से घायल, कोई दामन न रह जाये
बिना खुशियों की फुलवारी के कोई आंगन न रह जाये
बजाओ इस तरह की धुन, कि हर गैरत के सीने में
लरजते आंसुओं का शेष कोई सावन न रह जाये
खताओं के समंदर में न ढूंढो सत्य का मोती
कहीं जीवन चमन का घट अपावन न रह जाये
मुक्ति की राह में भक्ति के खंजर इस तरह मारो
किसी भी शख्स के दुर्व्यसन का साधन न रह जाये
जलाओ इस तरह से दीप हर जीवन के दरवाजे पे
उजाले से महरूम, कोई आंगन न रह जाये

SHARE