इक बेवफ़ा में रुह-ए-वफ़ा ढूंढ़ते रहेइक बेवफ़ा में रुह-ए-वफ़ा ढूंढ़ते रहेशोलों की बारिशों में सबा ढूंढ़ते रहेवो ढूंढ़ते हैं दिल को दुखाने का सिलसिलाउनकी ख़ुशी में हम तो मज़ा ढूंढ़ते रहेवो हैं कि मुस्कुरा रहे हैं चीर के जिगरहम हैं कि यार खुद की ख़ता ढूंढ़ते रहेघबरा के देखते कभी आकाश की तरफरुख़सत हुई ख़ुशी का पता ढूंढ़ते रहेठहरी हुई नदी में भरे जो रवानगीशिद्दत से रात दिन वो अदा ढूंढ़ते रहे