घर का रस्ता..घर का रस्ता भी मिला था शायदराह में संग-ए-वफ़ा था शायदइस क़दर तेज़ हवा के झोंकेशाख़ पर फूल खिला था शायदजिस की बातों के फ़साने लिखेउस ने तो कुछ न कहा था शायदलोग बे-मेहर न होते होंगेवहम सा दिल को हुआ था शायदतुझ को भूले तो दुआ तक भूलेऔर वही वक़्त-ए-दुआ था शायदख़ून-ए-दिल में तो डुबोया था क़लमऔर फिर कुछ न लिखा था शायददिल का जो रंग है ये रंग-ए-'अदापहले आँखों में रचा था शायद
This is a great आँखों का काजल शायरी. If you like शायरी आँखों की then you will love this. Many people like it for बातों बातों में शायरी.