फ़ुरसत-ए-कार फ़क़त..फ़ुरसत-ए-कार फ़क़त चार घड़ी है यारोये न सोचो के अभी उम्र पड़ी है यारोअपने तारीक मकानों से तो बाहर झाँकोज़िन्दगी शमा लिए दर पे खड़ी है यारोउनके बिन जी के दिखा देंगे चलो यूँ ही सहीबात इतनी सी है कि ज़िद आन पड़ी है यारोफ़ासला चंद क़दम का है मना लें चल करसुबह आई है मगर दूर खड़ी है यारोकिस की दहलीज़ पे ले जाके सजाऊँ इस कोबीच रस्ते में कोई लाश पड़ी है यारोजब भी चाहेंगे ज़माने को बदल डालेंगेसिर्फ़ कहने के लिये बात बड़ी है यारो
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