बुझा है दिल भरी महफ़िल में रौशनी देकरमरूँगा भी तो हज़ारों को ज़िन्दगी देकरक़दम-क़दम पे रहे अपनी आबरू का ख़यालगई तो हाथ न आएगी जान भी देकरबुज़ुर्गवार ने इसके लिए तो कुछ न कहागए हैं मुझको दुआ-ए-सलामती देकरहमारी तल्ख़-नवाई को मौत आ न सकीकिसी ने देख लिया हमको ज़हर भी देकरन रस्मे दोस्ती उठ जाए सारी दुनिया सेउठा न बज़्म से इल्ज़ामे दुश्मनी देकरतिरे सिवा कोई क़ीमत चुका नहीं सकतालिया है ग़म तिरा दो नयन की ख़ुशी देकर
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