उसके पहलू सेउसके पहलू से..उसके पहलू से लग के चलते हैंहम कहीं टालने से टलते हैंमै उसी तरह तो बहलता हूँऔर सब जिस तरह बहलतें हैंवो है जान अब हर एक महफ़िल कीहम भी अब घर से कम निकलते हैंक्या तकल्लुफ्फ़ करें ये कहने मेंजो भी खुश है हम उससे जलते हैं
कह रही है हश्र में वो आँख शर्माई हुईकह रही है हश्र में वो आँख शर्माई हुईहाय कैसे इस भरी महफ़िल में रुसवाई हुईआईने में हर अदा को देख कर कहते हैं वोआज देखा चाहिये किस किस की है आई हुईकह तो ऐ गुलचीं असीरान-ए-क़फ़स के वास्ते,तोड़ लूँ दो चार कलियाँ मैं भी मुर्झाई हुईमैं तो राज़-ए-दिल छुपाऊँ पर छिपा रहने भी दे,जान की दुश्मन ये ज़ालिम आँख ललचाई हुईग़म्ज़ा-ओ-नाज़-ओ-अदा सब में हया का है लगावहाए रे बचपन की शोख़ी भी है शर्माई हुईगर्द उड़ी आशिक़ की तुर्बत से तो झुँझला के कहावाह सर चढ़ने लगी पाँओं की ठुकराई हुई
बुझा है दिल भरी महफ़िल में रौशनी देकरबुझा है दिल भरी महफ़िल में रौशनी देकरमरूँगा भी तो हज़ारों को ज़िन्दगी देकरक़दम-क़दम पे रहे अपनी आबरू का ख़यालगई तो हाथ न आएगी जान भी देकरबुज़ुर्गवार ने इसके लिए तो कुछ न कहागए हैं मुझको दुआ-ए-सलामती देकरहमारी तल्ख़-नवाई को मौत आ न सकीकिसी ने देख लिया हमको ज़हर भी देकरन रस्मे दोस्ती उठ जाए सारी दुनिया सेउठा न बज़्म से इल्ज़ामे दुश्मनी देकरतिरे सिवा कोई क़ीमत चुका नहीं सकतालिया है ग़म तिरा दो नयन की ख़ुशी देकर
ये न जाने थे कि उस महफ़िल में दिल रह जाएगाये न जाने थे कि उस महफ़िल में दिल रह जाएगाहम ये समझे थे चले आएँगे दम भर देख कर