भूला हूँ मैं आलम को सर-शार इसे कहते हैंमस्ती में नहीं ग़ाफ़िल हुश्यार इसे कहते हैंगेसू इसे कहते हैं रुख़सार इसे कहते हैंसुम्बुल इसे कहते हैं गुल-ज़ार इसे कहते हैंइक रिश्ता-ए-उल्फ़त में गर्दन है हज़ारों कीतस्बीह इसे कहते हैं ज़ुन्नार इसे कहते हैंमहशर का किया वादा याँ शक्ल न दिखलाईइक़रार इसे कहते हैं इंकार इसे कहते हैंटकराता हूँ सर अपना क्या क्या दर-ए-जानाँ सेजुम्बिश भी नहीं करती दीवार इसे कहते हैंख़ामोश 'अमानत' है कुछ उफ़ भी नहीं करताक्या क्या नहीं ऐ प्यारे अग़्यार इसे कहते हैं
This is a great भूला दिया शायरी.