कहाँ क़ातिल बदलते हैं

SHARE

कहाँ क़ातिल बदलते हैं..
कहाँ क़ातिल बदलते हैं फ़क़त चेहरे बदलते हैं
अजब अपना सफ़र है फ़ासले भी साथ चलते हैं
बहुत कमजर्फ़ था जो महफ़िलों को कर गया वीराँ
न पूछो हाले चाराँ शाम को जब साए ढलते हैं
वो जिसकी रोशनी कच्चे घरों तक भी पहुँचती है
न वो सूरज निकलता है, न अपने दिन बदलते हैं
कहाँ तक दोस्तों की बेदिली का हम करें मातम
चलो इस बार भी हम ही सरे मक़तल निकलते हैं
हम अहले दर्द ने ये राज़ आखिर पा लिया 'जालिब'
कि दीप ऊँचे मकानों में हमारे खून से जलते हैं

This is a great बदलते चेहरे शायरी. If you like बदलते मौसम शायरी then you will love this. Many people like it for कहाँ हो तुम शायरी. Share it to spread the love.

SHARE