हर जनम में....हर जनम में उसी की चाहत थेहम किसी और की अमानत थेउसकी आँखों में झिलमिलाती हुईहम ग़ज़ल की कोई अलामत थेतेरी चादर में तन समेट लियाहम कहाँ के दराज़क़ामत थेजैसे जंगल में आग लग जायेहम कभी इतने ख़ूबसूरत थेपास रहकर भी दूर-दूर रहेहम नये दौर की मोहब्बत थेइस ख़ुशी में मुझे ख़याल आयाग़म के दिन कितने ख़ूबसूरत थदिन में इन जुगनुओं से क्या लेनाये दिये रात की ज़रूरत थे।
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