फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गयाअच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गयाहर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र मेंइक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गयारुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दरयह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गयाकुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से;फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गयाइक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतेंदिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गयाख्वाहिश तो थी "साजिद" मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की;लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया
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