गम-ए-ज़ज़्बात से घायलगम-ए-ज़ज़्बात से घायल, कोई दामन न रह जायेबिना खुशियों की फुलवारी के कोई आंगन न रह जायेबजाओ इस तरह की धुन, कि हर गैरत के सीने मेंलरजते आंसुओं का शेष कोई सावन न रह जायेखताओं के समंदर में न ढूंढो सत्य का मोतीकहीं जीवन चमन का घट अपावन न रह जायेमुक्ति की राह में भक्ति के खंजर इस तरह मारोकिसी भी शख्स के दुर्व्यसन का साधन न रह जायेजलाओ इस तरह से दीप हर जीवन के दरवाजे पेउजाले से महरूम, कोई आंगन न रह जाये